प्रेम: सैनिक के लिए
वह व्यक्ति जिसने कभी किसी सैनिक को देखा हो या उसके बारे में सुना हो तो “सैनिक” शब्द सुनते ही उसके मनोपटल पर ऐसे व्यक्ति की तस्वीर उभर आती है जिसके शरीर और वेशभूषा पर अनुशासन की छाप होती है, जिस पर देश और समाज की रक्षा का महान उत्तरदायित्व होता है, जिसकी प्रतीक्षा सदा वे विषम परिस्थितियाँ करती हैं जो जीवन की परीक्षा उस सीमा तक लेती हैं जहाँ केवल दृढ़ संकल्प ही टिक सकता है। सैनिक वह योद्धा है जिसका कर्तव्य और त्याग उसके व्यक्तिगत जीवन से बहुत बड़ा है, सैनिक संघर्ष का महान साक्षी है, वह सेवा की प्रतिज्ञा का ध्वजवाहक है, निर्भीक और नि:स्वार्थ सेवा उसका धर्म है, वीरगति उसके जीवन का उत्कर्ष है।
ऐसा बहुत कम होता है कि व्यक्ति को देखते ही उसके जीवन की गाथा स्वयं प्रकट हो जाए, कोई खोज-खबर बाकी ही न रहे, एक झलक, एक शब्द ही पर्याप्त हो उसके जीवन का महत्व और सार जान जाने के लिए। मानवता की लंबी विकास यात्रा में ऐसा जीवन दो ही प्रकार के व्यक्ति जी पाए हैं; एक संत और एक सैनिक। सैनिक का कर्तव्य पथ सदैव परिस्थितियों और मानव के स्वभाव की कठोरता से होकर गुजरता है, उसका व्यक्तित्व प्रतिकूल परिस्थितियों से दो चार होते-होते ही विकसित होता है। सैनिक वह कर्मयोगी है जिसका स्वागत कर्तव्य की धरा युगों-युग करती आई है, जिसके संघर्ष का, त्याग और आत्म-बलिदान का यशोगान कर्म पथ पर निरंतर गूँजता रहता है।
प्रेममय जीवन का यह प्रसंग सैनिक की कर्तव्य-यात्रा और उसके महान जीवन के लिए समर्पित है।
अपने जीवन के अनुभवों से, थोड़े प्रयासों और संतों की कृपा के प्रसाद स्वरूप, प्रेम के सम्बन्ध में मुझ अल्पज्ञानी ने जो कुछ भी जाना है, उसे मैंने अभ्यास के लिए दो काव्यात्मक पुस्तकों “प्रेम सारावली” एवं “मैं प्रेम हूँ” के रूप में संकलित कर लिया है, मेरी बातों का आधार यही दो पुस्तकें हैं
जीवन का एक आधारभूत सत्य यह है कि उसे स्वयं को बनाए रखने के लिए प्रकृति द्वारा स्थापित विषम परिस्थितियों से होकर गुजरना ही होता है इसलिए जहाँ जीवन है वहाँ संघर्ष है, संघर्ष जीवन का प्रमाण है। मनुष्य को छोड़कर अन्य प्राणियों का संघर्ष तो कुछ आवश्यकताओं तक ही सीमित है लेकिन मनुष्य ने अपनी प्रवृत्तियों से संघर्ष को विस्तार दे दिया है, मनुष्य ने अपनी अनियंत्रित महत्वाकांक्षाओं से अपने जीवन संघर्ष को उस सीमा तक पहुँचा दिया है जो आक्रान्ता का सामना करने के लिए सैनिक की प्रतीक्षा करती है। विषम परिस्थितियाँ और भौगोलिक सीमाएँ ही सैनिक के जीवन को निकटता से जान पाई हैं, वे ही उसे सत्यता से परिभाषित कर पाई हैं, वे सैनिक के साहसी और कठिन जीवन की प्रत्यक्षदर्शी जो होती हैं।
देश और समाज की रक्षा का संकल्प ले लेने वाला कोई वीर जिस घड़ी सैनिक जीवन को अपनाता है उसी समय उसके परिवार का विस्तार हो जाता है, तब वह अपने घर-गाँव और प्रदेश का ही नहीं बल्कि अपने देश का, अपनी मातृभूमि का लाड़ला हो जाता है, उसका कर्तव्य केवल अपने सीमित परिवार की ही नहीं बल्कि असीमित परिवार की रक्षा और सेवा करना हो जाता है। सैनिक की चेतना राष्ट्र-चेतना है, उसका सबसे मासूम चिंतन उसके कर्तव्यबोध और उस मातृभूमि के लिए है जिसकी गोद उसकी सदैव प्रतीक्षा करती हो, जिसके आँचल की छाँव ही उसकी आत्मा को उसकी सम्पूर्ण गरिमा दे, उसे वह ऐश्वर्य दे जो एक महान जीवन को ही उपलब्ध हो सकता है, धन्य है वह माँ जो भविष्य के सैनिक को जनती है, धन्य है वह धरा जिस पर सैनिक का जीवन उभरता है।
संसार भर के बुद्धिजीवियों को सैनिक के जीवन से सदैव प्रेरणा मिली है, वे यह स्वीकारते आए हैं कि सैनिक की तरह अपने लक्ष्य के लिए जीवन को हर परिस्थिति में स्वीकारना सबके लिए अनुकरणीय है। प्रत्येक विकसित समाज का यह सत्य है कि उसकी रक्षा करने वाले कर्तव्यजीवी सैनिक के जागते रहने के कारण ही बुद्धिजीवी चैन की नींद सो पाता है। किसी सामान्य व्यक्ति के समक्ष जब परिस्थितियाँ यह प्रश्न खड़ा कर देती हैं कि कर्तव्य और जीवन में से किसी एक का चुनाव ही संभव है तब एक साधारण व्यक्ति अपने जीवन को दाँव पर लगा कर अपने कर्तव्य का पालन करे यह सामान्य बात नहीं है लेकिन किसी सैनिक के लिए ऐसा करना बहुत ही सहज है उसके कर्तव्यबोध के सामने यह प्रश्न क्षण भर के लिए भी टिक नहीं सकता, वह तो सदैव कर्तव्य चुनेगा और इसके लिए अपना सर्वस्व झोंक देगा।
जीवन घटनाओं की रंगभूमि है। संभावनाओं और अनिश्चितताओं से भरे हुए इस संसार में मनुष्य जब अपनी कर्तव्य यात्रा पर निकलता है तो व्यक्ति के पास एक ओर तो लक्ष्य और योजनाएँ होती हैं वहीं दूसरी ओर आकस्मिकताओं की संभावनाएँ भी। हम मनुष्य प्रायः जीवन में अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को लेकर बहुत संवेदनशील होते हैं। हमारी संवेदनशीलता कभी-कभी हम पर इतना दबाव बना देती है कि हम छोटी-छोटी चुनौतियों का सामना करने से भी बचते हैं और यदि किसी कारणवश सामना करना ही पड़ जाए तो हम अपने प्रयासों पर टिके रहने के बजाय शीघ्र ही हौसला छोड़ देते हैं। ऐसे कठिन समय में व्यक्ति को अपनी दुर्बलता के सामने किसी सैनिक के जीवन को रख कर देखना चाहिए जो सिखाता है कि संघर्षों से भागना स्वयं से भागना है, जीवन की वास्तविकता को खो देना है, संघर्ष ही जीवन को उसका सही मूल्य देता है।
जीवन के संघर्ष को जीव विज्ञान के दृष्टिकोण से देखने पर हम पाते हैं कि प्रत्येक प्राणी के भीतर ही अनेकों युद्ध सदैव चलते रहते हैं। हमारे शरीर में, रक्त में रहने वाली रक्षी कोशिकाएँ हमारे भीतर प्रतिपल प्रवेश करने वाले हानिकारक जीवाणुओं, विषाणुओं और अन्य परजीवियों से हर समय लड़ती हैं, यदि वे न लड़ें तो क्या हम स्वस्थ जीवन जी पाएँगे? क्या जीवित भी रह पाएँगे? हमारे शरीर में यह संग्राम तब भी चल रहा होता है जब हम कोई उत्सव मना रहे होते हैं या चैन से सो रहे होते हैं। जीवन अपने सौन्दर्य के भीतर ही संघर्ष को जीता रहता है, सौन्दर्य इतना प्रभावशाली होता है कि वह संघर्ष की भायावहता को छुपा लेता है। इसीप्रकार सैनिक की यह विशेषता होती है कि जब वह युद्ध करता है तो वह अपने व्यक्तिगत जीवन या संघर्ष के प्रति भावुक नहीं होता, यदि आप मातृभूमि की सेवायात्रा पर बढ़ते हुए सैनिक के मन में झाँकेंगे तो पाएँगे कि उसे भली प्रकार पता होता है कि आने वाली घड़ी उसे क्या कुछ दिखा सकती है, वह जानता है कि आज नहीं तो कल उसका जीवन भी कर्तव्य के इस अप्रतिम सौन्दर्य को पा ही लेगा।
भारत समेत विश्व में ऐसे अनेकों देश हैं जिनकी संस्कृति और परंपरा ने सदैव मानव को यह सिखाया है कि अनियंत्रित महत्वाकांक्षाओं के भ्रमजाल में पड़कर नये-नये युद्ध रचने वाले व्यक्ति अंत में स्वयं का और अपने देश का ही विनाश कर बैठते हैं। उन्हें सैनिक के समर्पण, उसकी निष्ठा से सीखना चाहिए कि रक्षा करने वाला उनकी संकीर्ण और विध्वंसक सोच से बहुत ऊपर की सोच रखता है। रक्षक अपने संकल्प और उद्देश्य में आक्रांता से कई गुना अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी जीवन जीता है। अहंकार और अपने प्रभुत्व के विस्तार की मानसिकता के साथ जीने वाले भ्रमित मानव! तुम रक्षक के कर्तव्य-प्रेम की शक्ति के आगे टिक नहीं सकोगे, भले ही तुम संग्राम के कितने ही विनाशकारी हथियार बना लो, तुम विनाश और विध्वंस के नये-नये प्रयोगों में आज अपनी सफलता देखते हो, तुम आज मशीनों को भी युद्ध सिखा रहे हो लेकिन याद रखना कि इन मशीनों से एक दिन तुम वफादारी की उम्मीद भी पालोगे और तब तुम्हारा प्रेमहीन जीवन तुम्हें चैन से सोने नहीं देगा, तुम्हारी विनाशक मशीनें कभी भी वीर नहीं कहलायेंगी इसलिए नहीं कि उनमें बल नहीं होगा बल्कि इसलिए क्योंकि उनमें दिल नहीं होगा जो एक सैनिक के पास होता है।
वह जो घर बनकर सदा फूला फला
उससे पूछो देश बनकर क्या किया?
उलझती सीमा के दुख का बोझ हरता वीर हूँ
मैं प्रेम हूँ
-II मैं प्रेम हूँ I
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि आपसी जुड़ाव और निष्ठा की अच्छी प्रवृत्तियों से मनुष्य ने परिवार बनाए और इसका परिणाम यह हुआ कि मानवता को वह विकास और उत्थान मिला जिसने उसे सार्थक बनाया, लेकिन अपने समाज के विस्तार की प्रक्रिया में सभ्यताएँ जब देशों के रूप में उभरीं तभी से सीमाएँ आपस में उलझती आई हैं, वे सदा बँटी हैं, मनुष्य को यह स्वयं से पूछना चाहिए कि देशों में बँटकर वह कितना सार्थक जीवन जी पाया है? मैं वह वीर हूँ जो एक दूसरे से उलझती हुई सीमाओं के दुख का बोझ उठाने के लिए सदैव तत्पर रहता है, जो उनकी रक्षा करता है।
धरे राह विध्वंस की मार-मार मिट जाय
मानव तेरे द्वेष का केवल प्रेम उपाय
-II प्रेम सारावली II
भले ही मानव विध्वंस और विनाश करने के कौशल को कितना ही महत्व दे लेकिन सच्चे अर्थों में यह कोई उपलब्धि नहीं बल्कि उसका दुर्भाग्य ही है। मानवता के लिए विध्वंस और विनाश की राह अंत में आत्मघाती ही सिद्ध होगी। इस तथ्य को आज का मनुष्य जितनी शीघ्रता से हो सके आत्मसात कर ले कि जय-पराजय और वर्चस्व का अहंकारी खेल बहुत विषैले परिणाम लाता है, मानव के स्वभाव के लिए ईर्ष्या, द्वेष, और घमण्ड के प्रभाव में होने वाला भ्रमज्ञान बहुत हानिकारक है। मनुष्य को समय रहते प्रेम के अपार महत्व को समझ लेना चाहिये क्योंकि वास्तविक अर्थों में प्रेम ही उसके स्वभाव को वह पक्का आधार दे सकता है जो उसके लिए सदा हितकारी है।
मातृभूमि की जय के लिए, अपनों के भय और कष्टों को मिटाने के लिए परिस्थिति की विभीषिका से जूझने वाले वीर! तुम्हें कोटि-कोटि नमन। तुमने जिस कौशल और समर्पण से अपने कर्तव्य-पथ को चमकाया, तुमने जिस तत्परता से अपने व्यक्तिगत सुखों को, सपनों को समेटकर छुपाया, तुमने जिस आदर और गौरव-भाव से आत्म-बलिदान का चित्र अपने हृदय में उतारा उसकी झलकियाँ भी लाखों के मन को रोमांचित करती हैं, पवित्र करती हैं, उन्हें निर्भय और निश्चिंत करती हैं कि तुम हो तो सब ठीक है। वीरता तुम्हें पाकर गौरवान्वित हुयी है, परिभाषित हुयी है। कर्तव्य-प्रेम ही तुम्हारे जीवन की भूमिका है और संघर्षों पर विजय ही तुम्हारी नियति। प्रणाम है तुम्हारे संकल्प को कि जब-जब मानवता सोयेगी, तुम्हें तब-तब लड़ना है, कि तुम्हें तब तक लड़ते रहना है जब तक मनुष्य जाग नहीं जाता।
मेरी प्रेममय चेतना से यह प्रार्थना है कि प्रत्येक मानव को प्रेम का ऐसा अनुभव दे कि उसे समय रहते प्रेम का महत्व समझ में आ जाए, मानव जीवन प्रेममय हो जाए I सभी को अल्पज्ञानी का प्रणाम!