प्रेम क्यों और कितना महत्वपूर्ण है?
यदि किसी व्यथित और अशांत व्यक्ति से कोई स्नेह से इतना ही पूछ ले कि आप कैसे हैं? ठीक तो हैं ना? तो क्या पल भर में वह अपने दिल की बात सच-सच सामने प्रकट नहीं कर देगा? अवश्य ही कर देगा I स्नेह भरे कुछ शब्दों का ऐसा अद्भुत प्रभाव होता है I अब एक और दृश्य लेते हैं, आपकी गोद में यदि किसी मासूम बच्चे को मिनट भर के लिए भी रख दिया जाए तो क्या उसकी मासूमियत आपको अपनी तरफ खींच नहीं लेगी? उसकी भाव भंगिमा और चेष्टाएँ आपको पल भर के लिए एक ऐसा भावपूर्ण माहौल देंगी कि आप उसे दुलारने ही लगेंगे I बिना एक भी शब्द बोले वो मासूम बच्चा आपको जीवन के सौंदर्य का प्रत्यक्ष अनुभव करा देगा I आप क्षण भर में जीवन से जीवन के जुड़ाव की सुदूर यात्रा कर लेंगे और स्वयं में एक ताज़गी का भी अनुभव करेंगे I भावपूर्ण सम्बन्ध जब निर्दोष होता है तो वह प्रेम की ओर ले ही जाता है, चाहे वह भावनात्मक जुड़ाव मनुष्य के प्रति हो या अन्य प्राणियों के लिए या फिर असीम चेतन परमात्मा के लिए I प्रेममय जीवन में आइए हम प्रेम को यथार्थ रूप में जानें, प्रेम को जिएँ, प्रेम में झूमें, हम प्रेम में डूबे
अपने जीवन के अनुभवों से, थोड़े प्रयासों और संतों की कृपा के प्रसाद स्वरूप, प्रेम के सम्बन्ध में मुझ अल्पज्ञानी ने जो कुछ भी जाना है, उसे मैंने अभ्यास के लिए दो पुस्तकों “प्रेम सारावली”एवं “मैं प्रेम हूँ”के रूप में संकलित कर लिया है, मेरी बातों का आधार यही दो पुस्तकें हैं
प्रसंग-1 में हमने जाना कि प्रेम क्या होता है और प्रेमी कैसा होता है I प्रसंग-2 में प्रश्न है कि प्रेम क्यों और कितना महत्वपूर्ण है? इस प्रसंग के प्रारंभ में जिन दो दृश्यों पर हमने विचार किया था वे हमें यही बताते हैं कि मानव जीवन ही नहीं बल्कि सभी प्राणियों के सन्दर्भ में प्रेम बहुत महत्वपूर्ण है I अपने पालतू पशुओं के साथ भी हम एक भावपूर्ण सम्बन्ध को तो महसूस करते ही हैं साथ ही हम यह भी महसूस करते हैं कि वे भी हमारे साथ एक भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं I
हमारी सनातन संस्कृति में तो हमारे पालतू पशुओं जैसे गाय को माँ के रूप में देखा जाता है, और उनके रख-रखाव को सेवा के रूप में माना जाता है I मानव द्वारा अनुभव किए जाने वाले प्रेम की यह कितनी सुंदर और बोलती हुई तस्वीर है! जिन संस्कृतियों ने प्रेम को पाला पोसा है, प्रेम ने बदले में उन्ही संस्कृतियों की सेवा की है, उन्हें बल दिया है I प्रेम के महत्व का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है?
किसी सादा सरल जीवन जीने वाले व्यक्ति से मिलकर आप भी कभी ना कभी उसकी सादगी से प्रभावित अवश्य हुए होंगे और आपको भी लगा होगा कि काश! मेरा जीवन भी जटिलताओं से उबर जाए, कुछ सरल हो जाए I जीवन की सादगी और सरलता में दरअसल सबसे बड़ी बाधा हमारा अहं है I सामान्यतः यह बात पकड़ में नहीं आती कि हमारे दुखों के साथ-साथ हमारे सुखों को भी सरल किए जाने की आवश्यकता होती है I दुख को तो हर कोई गंभीरता से लेता है इसलिए सतर्क रहता है लेकिन सुखों को अनावश्यक बढ़ावा देना भी एक दिन हमारे दुख का ही कारण बन जाता है I
प्रेम सुख और दुख दोनों को सरल करता है इस प्रकार प्रेम जीवन को सरल करता है I -II प्रेम सारावली- सूत्र- १३ I
सुख-दुख में समता रखे प्रेम शरण जो आय द्वंद्व मिटे आनंद हो माया छ्टती जाय -II प्रेम सारावली II
प्रेम दुख रूपी क्लेश को तो सरल कर कर के मिटा ही देता है साथ ही सुख की जटिलता को भी मिटा देता है और उसे सुगम बना देता है ताकि व्यक्ति में सुख भोग का लालच, आलस्य और अकर्मण्यता ना आ जाए I प्रेम जीवन को दोनों पहलुओं से सरल कर देता है I
व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो प्रेम सम्बन्ध को मजबूती देता है इसलिए समाज को जोड़ने का काम करता है I
प्रेम सम्बन्ध को पुष्ट करता है I -II प्रेम सारावली- सूत्र- ९ II
प्रेम चित्त को निर्मल करता है I -II प्रेम सारावली- सूत्र- १० II
प्रेम जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करता है I -II प्रेम सारावली- सूत्र- १४ II
जिस किसी व्यक्ति के जीवन में प्रेम अपनी जगह बना लेता है उसका स्वभाव निर्मल हो जाता है, और निर्मल स्वभाव जीवन की गुणवत्ता सुधार देता है I
जग का मूल स्वभाव है जगत गुणों का कोष है स्वभाव यह प्रेम का मेटे मन के दोष -II प्रेमसारावली II
यह संसार अपने मूल स्वभाव में गुणों का एक खजाना ही तो है जहाँ तरह-तरह के गुण प्रकट होते रहते हैं, प्रेम की विशेषता यह है कि वह मन के संसार में आकर उसके दोष मिटा देता है I
मन दुर्बल रहता नहीं जहाँ प्रेम के बीज हटें टोटके चित्त से सो उतरे ताबीज -II प्रेमसारावली II
व्यक्ति के मन मस्तिष्क में अगर प्रेम के बीज भी पड़ जाएँ तो वे मन को इतना सबल और सक्षम बना देते हैं कि फिर ऊपरी टोटकों और ताबीज़ों की भी आवश्यकता नही रहती I मन की दुर्बलता समाप्त हो जाती है I
उगले है विष द्वेष का और कभी भय खाय मानव सुलझे प्रेम से द्वेष मिटे भय जाय -II प्रेमसारावली II
मन में द्वेष पालने वाला व्यक्ति द्वेषपूर्ण व्यवहार तो करता ही है साथ ही असुरक्षा की भावना से भयभीत भी रहता है I क्लेशों में फँस चुके ऐसे व्यक्ति को भी प्रेम एक सुलझा हुआ व्यक्ति बना देता है और उस व्यक्ति के भीतर के द्वेष और भय को मिटा देता है I
साथी के दुख का चोर मैं आसक्त मन का मोर मैं जग को जगाती भोर हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं अपने साथी के दुख को चुरा लेने वाला चोर हूँ, मैं आसक्ति में पड़े हुए मन में नाचता हुआ मोर हूँ, मैं वह भोर हूँ जो संसार को जगा देती है I
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो समाज में भिन्नताएँ अवश्य होती हैं, रूप-रंग, भाषा-बोली, खान- पान, रहन-सहन सभी में थोड़ी-थोड़ी भिन्नताएँ होती हैं, लेकिन फिर भी किसी एक समाज में एकजुटता तो होती ही है, एकत्व तो होता ही है I समाज स्वयं में एक ऐसी इकाई है जो सब को साथ लेकर आगे बढ़ती है, और वह समाज जो प्रेम का महत्व समझता है, सच्चे अर्थों में सुखी, संपन्न और समृद्ध हो जाता है I
हज हूँ मैं, तीरथ हूँ मैं सम-भाव से स्वीकृत हूँ मैं जो नहीं पहुँचे कहीं उन तक पहुँचता धाम हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं धर्म की वह यात्रा हूँ जो अलग-अलग समाजों द्वारा समान रूप से अपनाई गयी और वे जिन्होने किसी भी धर्म को नहीं अपनाया मैंने उन्हें भी अपनाया है, मैं वह धाम हूँ जो स्वयं ही उन लोगों तक आ पहुँचता हूँ जिन्होने धर्म की कोई यात्रा प्रारंभ नहीं की I
वे जिसे दुत्कारते मैं उसे स्वीकार लेता वे जिसे धिक्कारते मैं उसे सत्कार देता हर प्रकृति हर भाव का सम्मान हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि जिसे सब दुत्कारते हैं मैं उसे स्वीकारता हूँ, जिसे सब धिक्कारते हैं मैं उसे भी सत्कार देता हूँ, मैं वह सम्मान हूँ जो भेदभाव नहीं जानता, मैं सबके लिए समान हूँ I
सम्बन्धों का दर्पण मैं समरसता का दर्शन मैं कुरूप को सौंदर्य का प्रणाम हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं वह दर्पण हूँ जिसमें सम्बन्ध अपनी सुंदरता को और अपनी सच्चाई को साफ-साफ देख पाते हैं, मैं वह दर्शन हूँ जो समरसता का सिद्धांत सिखाता है I जब समाज में कौन सुंदर है और कौन कुरूप यह भेदभाव ही खत्म हो जाए और कोई अत्यंत सुंदर किसी अत्यंत कुरूप को भी आदर पूर्वक प्रणाम करने लगे, मैं वह दृश्य हूँ I
नाथ की मैं प्रार्थना हूँ दास का वरदान हूँ संसार का समता भरा व्यवहार हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं मानवीय व्यवहार का वह अनूठा दृश्य हूँ जहाँ मेरे आश्रित होकर स्वामी भी अपने दास से प्रार्थना कर बैठता है और दास अपने ही स्वामी को वरदान दे देता है, मैं संसार को समानता का व्यवहार सिखाता हूँ I
प्रेम जलाशय खोजिए जीवन जिसके पास तन-मन को निर्मल करे मेटे सबकी प्यास -II प्रेमसारावली II
जैसे नदियों और जलाशयों के आस पास ही प्राणियों की आबादियाँ और सभ्यताएँ पलतीं हैं वैसे ही अनुभवों के संसार में प्रेम रूपी जलाशय के पास जीवन की खुशियाँ पलतीं हैं और यह प्रेम रूपी जलाशय तन मन को तो स्वच्छ करता ही है जीवन को तृप्त भी करता है I
सामाजिक महत्व से आगे प्रेम का आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व और भी अधिक है, यह महत्व इतना अधिक है कि हम यह कह सकते हैं कि बिना प्रेम के अध्यात्म की यात्रा अधूरी है I
प्रेम भाव में हो गया जिनका जीवन स्वच्छ ईश्वर प्रेमी रूप में उनसे है प्रत्यक्ष -II प्रेमसारावली II
यह प्रेम की भावना का ही चमत्कार है कि आध्यात्मिक यात्रा पर निकले पथिकों का जीवन तेजी से स्वच्छ होने लगता है और उन्हें ईश्वर के प्रेम का प्रत्यक्ष अनुभव होने लगता है I
सच्चे प्रेम की खोज में निकले ओ पंथी! प्रेम के इस पथ को स्वयं सत्य ही समझना, इस पथ को तो अनेक लोग चुनते हैं लेकिन यह पथ जिसे चुन लेता है उसका जीवन प्रेम के लिए ही समर्पित हो जाता है, ऐसे समर्पित व्यक्ति को प्रेम भगवान से मिला ही देता है I मेरी प्रेममय चेतना से यह प्रार्थना है कि प्रत्येक मानव को प्रेम का ऐसा अनुभव दे कि उसे समय रहते प्रेम का महत्व समझ में आ जाए, मानव जीवन प्रेममय हो जाए I
पंथी पथ को प्रेम के प्रकट सत्य ही जान यह जिसको चुनता उसे मिलता है भगवान -II प्रेमसारावली II
सभी को अल्पज्ञानी का प्रणाम!
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