प्रसंग-4 : प्रेम और जीवन का लक्ष्य

प्रेम और जीवन का लक्ष्य

                                                 राहें सब हैं जगत में चुन ले अपनी राह                                                                                                                
                                                 क्यूँ जग से भागा फिरे पढ़ तो अपनी चाह!
                                                                                                      -II प्रेम सारावली II
                                                   मन की मंडी बिक गयी एक प्रेम फल पाय                                                                                                       
                                                   स्वाद अलौकिक मिल गया ऊँचा भाव उठाय
                                                                                                        -II प्रेम सारावली II
                                                   व्यक्तिगत सन्दर्भ में जीवन सदा संघर्ष है                                                                                                        
                                                   जीवन के सच को जानना संघर्ष का निष्कर्ष है                                                                                                    
                                                   चित्त को उत्कर्ष देता सिद्ध-शाश्वत योग हूँ                                                                                                              
                                                   मैं प्रेम हूँ  
                                                                                                         -II मैं प्रेम हूँ II
                                                   तुम पुरस्कृत हो ना हो, कर्म वह चुनना सदा                                                                                                         
                                                   जो तुम्हें जोड़े सभी से, बने सबकी सम्पदा 
                                                   कर्म-सुख में शुद्धता का स्वाद भरता तत्व हूँ  
                                                   मैं प्रेम हूँ                                                                                                                                            
                                                                                                          -II मैं प्रेम हूँ II                                                                                                                                               

3 thoughts on “प्रसंग-4 : प्रेम और जीवन का लक्ष्य”

Leave a Comment