प्रसंग-3: प्रेम के रूप और प्रेम की सर्वोच्च अवस्था

प्रेम के रूप और प्रेम की सर्वोच्च अवस्था

               व्यक्ति में सामान्यत: अनुभवों का विस्तार होते रहने के कारण प्रेम की अनुभूति में परिवर्तन आता है I
                                                                                                         -II प्रेम सारावली- सूत्र- ७ II
                                                    कभी प्रेम वर्षा लगे कभी सुनहरी धूप
                                                    कभी भाव सरिता लगे कभी मर्म का कूप
                                                                                                          -II प्रेम सारावली II
                                                    ज्यामिति सम्बन्ध की मैं                                                                                                                                    
                                                    चाप मैं, हूँ रेख मैं                                                                                                                                            
                                                    कोण मैं, हूँ परिधि मैं, मैं केन्द्र हूँ                                                                                                                           
                                                    मैं प्रेम हूँ
                                                                                                         -II मैं प्रेम हूँ II
                                                     मैं प्रिया, प्रियतम हूँ मैं                                                                                                                                      
                                                     नाथ मैं, सेवक हूँ मैं                                                                                                                                           
                                                     गुरु, बंधु, मित्र मैं, साकार बारम्बार हूँ                                                                                                                   
                                                     मैं प्रेम हूँ
                                                                                                        -II मैं प्रेम हूँ II
                                                       सोए का सुख बस सपना                                                                                                                                
                                                       जागत का सब जग अपना                                                                                                                                             
                                                       दृष्टि का अभ्यास हूँ     
                                                       मैं प्रेम हूँ                  
                                                                                                        -II मैं प्रेम हूँ II                                                                                                                                                                  
                                                       बरसता बादल हूँ मैं                                                                                                                                          
                                                       घट-घट पहुँचता जल हूँ मैं                                                                                                                                
                                                       एक का अनेक में विस्तार हूँ                                                                                                                                          
                                                       मैं प्रेम हूँ
                                                                                                        -II मैं प्रेम हूँ II

                                                      प्रेम अस्तित्व के ऊँचे आयामों को प्रत्यक्ष कराता है I
-II प्रेम सारावली- सूत्र- १५ II
                                                      तीन अवस्था और तल प्रेम परिस्थिति जन्य                                                                                                          
                                                      तीनों को पहचानिये स्थूल सूक्ष्म चैतन्य
                                                                                                                 -II प्रेम सारावली II
                                                      मोह भरे अनुराग के सुख में जिसका मूल
                                                      प्रेम अवस्था और तल हैं कहलाते स्थूल                                                                                                                                                
                                                                                                                  -II प्रेम सारावली II
                                                      विषय बने आनंद जब अनुभव होता सूक्ष्म        
                                                      प्रेम अवस्था और तल होते हैं तब सूक्ष्म              
                                                                                                                    -II प्रेम सारावली II                                                                                                              
                                                      परे विषय से होय जब चेतन अनुभवगम्य                                                                                                          
                                                      निज स्वरूप जो हो अचल प्रेम कहो चैतन्य
                                                                                                                     -II प्रेम सारावली II
                                                      अनुभव सबसे निकट है अनुभव कर ले जीव                                                                                                      
सत्य कल्पना भ्रांति की अनुभव रखता नींव
-II प्रेम सारावली II
                                                         सही ज्ञान तो प्रेम का होते-होते होय                                                                                                                                
                                                         जो ठहरे आगे बढ़े भागे पथ को खोय
                                                                                                                      -II प्रेम सारावली II                                                                           

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