प्रेम: विद्यार्थियों के लिए
शिक्षित समाज का हिस्सा बन गए हम मानवों का यह सौभाग्य है कि हम अपनी समझ का विकास सीखने की एक निश्चित प्रक्रिया से कर पाते हैं और इसलिए हम बचपन से ही विद्यार्थी हो जाते हैं। विद्यार्थी वही है जो अपने भीतर सीखने की लगन को पालता है और सीखना जानता है। सीखने की कला और परिश्रम विद्यार्थी के जीवन को वह सौन्दर्य देते हैं कि मानव समाज भी उसकी प्रतिभा से मोहित होकर उसका गौरव गान करता है। यदि आप भी जीवन के तथ्यों की खोज में हैं तो जाइये किसी विद्यार्थी के मस्तक को देखिए, जिसकी सिलवटें प्रश्न करना सिखाती हैं और जिसकी चमक में प्रश्नों के उत्तर ठहरते हैं, विद्यार्थी के चेहरे के तेज का यही रहस्य है।
लेकिन एक अच्छा विद्यार्थी बनना कोई एक-दो दिन की बात नहीं है, विद्यार्थी होना स्वयं में एक पूरा जीवन जीने जैसा है जिसकी गौरवशाली गाथा कोई रातों-रात नहीं बन जाती। विद्यार्थी के जीवन की दिनचर्या ही अलग होती है, उसके लक्ष्य निश्चित होते हैं, यही कारण है कि एक अच्छा विद्यार्थी लगातार सीखने के प्रयासों में जुटा रहता है, उसका परिश्रम उसे थकाता नहीं है बल्कि उसे आनंद देता है। उसके प्रश्न उसे जगाते हैं और उन प्रश्नों के उत्तर पा कर वह चैन की नींद सोता है। विद्यार्थी की गहरी नींद इसीलिए अनमोल होती है क्योंकि उसमें प्रयासों के संतोष का सुख होता है।
प्रेममय जीवन के इस प्रसंग में हम विद्यार्थी होने के गौरव, गरिमा और आनंद को जानेंगे। प्रेम की आभा से चमकता हुआ यह प्रसंग विद्यार्थियों के लिए समर्पित है
पिछले प्रसंग तक हमने यह तो जान ही लिया है कि प्रेम क्या होता है, प्रेमी कैसा होता है, प्रेम का क्या महत्व है, प्रेम की कौन-कौन सी अवस्थाएँ होती हैं, और यह कि हमारे जीवन के लक्ष्यों में और विभिन्न परिस्थितियों में प्रेम का क्या स्थान है।
अपने जीवन के अनुभवों से, थोड़े प्रयासों और संतों की कृपा के प्रसाद स्वरूप, प्रेम के सम्बन्ध में मुझ अल्पज्ञानी ने जो कुछ भी जाना है, उसे मैंने अभ्यास के लिए दो काव्यात्मक पुस्तकों “प्रेम सारावली” एवं “मैं प्रेम हूँ” के रूप में संकलित कर लिया है, मेरी बातों का आधार यही दो पुस्तकें हैं
एक विद्यार्थी के आसपास का वातावरण उसकी प्रतिभा पर सीधा प्रभाव डालता है इसीलिए विद्यार्थी को अपने वातावरण के प्रति स्वयं भी बहुत सजग रहना चाहिए तथा विद्यार्थी के परिवार और आस-पास के लोगों को भी इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि जितना हो सके विद्यार्थी के प्रयासों और संकल्पों पर उनके द्वारा कोई नकारात्मक प्रभाव ना पड़ने पाए। हमें इस तथ्य को जस का तस बिना लाग-लपेट के स्वीकार कर लेना चाहिए कि विद्यार्थी परिवार, समाज और देश की वह धरोहर है जो यदि ठीक प्रकार से विकसित हो गया तो स्वयं के साथ-साथ सभी को उत्कर्ष देता है। इसलिए विद्यार्थी जीवन के प्रति लापरवाही भरा या उपेक्षा भरा दृष्टिकोण तो होना ही नहीं चाहिए। मेरा तो यही मानना है कि एक विद्यार्थी को सभी के द्वारा महत्व, प्रोत्साहन और प्रेम दिए जाने की आवश्यकता होती है, अतः विद्यार्थी के प्रति हमारी भावना में कोई विकृति नहीं होनी चाहिए।
यह हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली की असफलता नहीं तो और क्या है कि ऊँचे लक्ष्य के दबाव में आकर विद्यार्थी स्वयं को निराशा के गर्त में गिरा हुआ पाता है और आत्मघाती विचारों से घिर जाता है? विद्यार्थी को इस मनोदशा तक पहुँचने के लिए आप किसे उत्तरदाई पाते हैं? हम लक्ष्य की कठिनता पर इस प्रश्न को नहीं फेंक सकते क्योंकि जीवन का कोई भी लक्ष्य स्वयं में आसान होता ही नहीं, लक्ष्य को आसान तो प्रयास ही करते हैं, और विद्यार्थी प्रयास तो करता ही है। तो फिर कौन उत्तरदाई है? कहीं ऐसा तो नहीं कि महत्वाकांक्षा के मुखौटे लगा कर हम अब लक्ष्यों की विकृत परिभाषा गढ़ने लगे हैं? या कहीं ऐसा तो नहीं कि अपनी व्यस्तता में खोए हुए हम विद्यार्थी की कोमलता और गंभीरता के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं?
अनपढ़ का अध्यापक मैं ज्ञानवान की पुस्तक मैं आचरण का मर्म हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि एक अनपढ़ के लिए मैं अध्यापक का रूप ले कर उसे अपना लेता हूँ और शिक्षित कर देता हूँ, मैं ज्ञानी व्यक्ति के द्वारा बार-बार पढ़ी जाने वाली वह पुस्तक हूँ जो उसे सदा लाभान्वित करती है, मैं आचरण में स्वतः सिद्ध हो जाने वाला गूढ़ तत्व हूँ।
यदि आप एक विद्यार्थी हैं तो आपके मन में भी यह प्रश्न उठता होगा कि अपनी प्रारम्भिक एवं माध्यमिक शिक्षा में हम इतने विषय क्यों पढ़ते हैं? भाषा, गणित, विज्ञान, कला इत्यादि हमारे प्रारम्भिक एवं माध्यमिक पाठ्यक्रम में क्यों होते हैं? हम इतने विषय दो मुख्य कारणों से पढ़ते हैं: पहला कारण यह कि हमारी सीखने-समझने की क्षमता के बहुमुखी विकास के लिए इन अलग-अलग विषयों का अपना-अपना महत्व होता है तथा अपनी रुचि के अनुसार आगे जा कर हमें अपने कार्यक्षेत्र के चुनाव के लिए एक से अधिक विकल्प भी मिल जाते हैं, और दूसरा कारण यह कि वर्तमान मानव समाज इतना समृद्ध और जटिल हो चुका है कि सामान्यज्ञान का क्षेत्र भी बहुत बड़ा हो गया है, और स्वयं को जीवन की दौड़ में सफल बनाए रखने के लिए हमें तथ्यों की जानकारी रखना बहुत आवश्यक हो गया है। जैसे-जैसे हम उच्च शिक्षा की ओर बढ़ते जाते हैं तो हम किसी एक ही विषय को विस्तार से जानते हैं तभी तो आगे जाकर हम किसी एक विषय के एक छोटे से हिस्से पर गहराई से अध्ययन करते हुए नई खोज कर लेते हैं ।
भले ही वर्तमान मानव समाज में सीखने-जानने के लिए विभिन्न सामाजिक माध्यम उपलब्ध हैं, लेकिन विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक का अपना महत्व होता है। बड़े भाग्यशाली होते हैं वे विद्यार्थी जिन्हें महान शिक्षक मिलते हैं। एक अच्छा शिक्षक विद्यार्थी के जीवन को बदल कर रख देता है। विद्यार्थी के जीवन में उसका योगदान और प्रभाव केवल विषय ज्ञान तक ही सीमित नहीं होता बल्कि विद्यार्थी के पूरे व्यक्तित्व को निखार देता है। ऐसे शिक्षक की सीखों को विद्यार्थी जब-जब याद करता है तब-तब लाभान्वित होता है। विद्यार्थी और शिक्षक के सम्बन्ध की प्रकृति ही कुछ ऐसी होती है कि उनके प्रयास और सफलता एक दूसरे पर आश्रित होते हैं। यदि शिक्षक अपने प्रयास में सफल हो जाता है तो विद्यार्थी की सफलता भी निश्चित हो जाती है, और जब विद्यार्थी सफल हो जाता है तो शिक्षक की सफलता भी स्वतः सिद्ध हो जाती है।
लेकिन वर्तमान शिक्षा जगत की चुनौतियाँ भी गंभीर हैं। विद्यार्थी की कोमलता और अपरिपक्वता को आगे रख कर यदि विचार किया जाए तो स्थिति चिंताजनक है। आधुनिकता की अंधी दौड़ ने शिक्षण संस्थानों की और शिक्षक की सफलता की परिभाषा ही बदल कर रख दी है, मेरी दृष्टि में तो शिक्षा का व्यापार कभी भी शिक्षा की आदर्श परिभाषा सिद्ध हो ही नहीं सकता। जब हम अपनी संस्कृति की धरोहर रह चुकी प्राचीन और मध्यकालीन शिक्षण व्यवस्था के बारे में जानते हैं तो हमें “गुरु” होने का सच्चे अर्थों में पता चलता है, गुरु वह होता था जो अपने शिष्यों को संतानों की तरह पालता और पढ़ाता था, उनके चरित्र निर्माण का और देखभाल का पूरा उत्तरदायित्व उठाता था। वर्तमान समाज की जटिलता और विकृतियों को देखा जाए तो अब शिक्षक और गुरु की पहचान में ही भिन्नता आ गई है।
मैं मिठास, मैं भावालय मैं भोले का विद्यालय गुरु की मंगल छाँव, शिष्य की लगन हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं व्यवहार में उतर जाने वाली मिठास हूँ, मैं भाव का निवास स्थल हूँ, भोले विद्यार्थी का मैं विद्यालय हूँ, मैं गुरु के मार्गदर्शन की वह शुभ छाया हूँ जो अपने शिष्य के हितों के प्रति सदैव सजग रहता है, और मैं ही गुरु के प्रति लगाव और आस्था से प्रेरित रहने वाली शिष्य की सीखने की लगन हूँ।
एक अच्छा शिक्षक यह सुनिश्चित कर लेता है कि उसके मार्गदर्शन में किसी विद्यार्थी को अपने परिश्रम के परिणाम में विचलित कर देने वाली सीख या निष्कर्ष ना मिले। इसीलिए एक अच्छा शिक्षक विद्यार्थी के प्रयासों को प्रोत्साहन का बल अवश्य देता है, शिक्षक का प्रोत्साहन विद्यार्थी में अभूतपूर्व ऊर्जा स्थापित कर देता है। एक महान शिक्षक विद्यार्थी में प्रतिस्पर्धा का संतुलित प्रवाह भी करता है ताकि विद्यार्थी और बेहतर प्रयास करे लेकिन वह प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ विद्यार्थी को वह स्नेह भी देता है जो उसे सभी से प्रेम करना सिखाए ताकि प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में भागता विद्यार्थी कटु भावना और निराशा के दलदल की ओर ना बढ़ जाए। संतोषप्रद बात यह है कि वर्तमान समाज में भी एक अच्छा शिक्षक यह भली भाँति जानता है कि विद्यार्थी की कोमलता और अपरिपक्वता को जिस ऊँचाई के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है वह उसे बिना शर्त मिलनी चाहिए।
गलतियाँ करना और उनमें सुधार करना विद्यार्थी की दिनचर्या का स्वाभाविक अंग है, हमें इस अव्यावहारिक तर्क से बचना चाहिए कि विद्यार्थी गलती ही ना करे या स्वयं का मार्गदर्शन स्वतः ही कर ले। विद्यार्थी के साथ-साथ उसके परिवार को, शिक्षक को और आस-पास के लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विद्यार्थी को सही वातावरण प्राप्त हो। वातावरण सही मिलने पर विद्यार्थी में सीखने की लगन और सीखने की कला स्वतः विकसित होती है।
एक विद्यार्थी या साधक को अपने द्वारा की गईं त्रुटियों से निराश और दुखी होकर बैठ नहीं जाना चाहिए बल्कि अच्छी भावना से प्रेममय होकर अपने प्रयास-पथ पर बढ़ जाना चाहिए और इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि फिर से वही गलती ना की जाए।
पंथी पथ की भूल को मत निज मन में पाल पग पथ पर रख प्रेम से अगला कदम सम्हाल -II प्रेम सारावली II
उचित वातावरण के साथ-साथ विद्यार्थी को पुस्तकों, शिक्षक की उपलब्धता और अध्ययन के समय का भी प्रबंध करने के लिए परिवार तथा आस-पास के लोगों के सहयोग की निरंतर आवश्यकता रहती है, यह तथ्य उन विद्यार्थियों के लिए तो बहुत महत्व रखता है जिन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए आर्थिक और सामाजिक संघर्षों से जूझना पड़ता है।
एक प्रेमी से सीख लेते हुए एक विद्यार्थी या साधक को भी जीवन में आने वाले कष्टों को इस दृष्टिकोण से देखना चाहिए कि कष्ट और पीड़ा सहज रूप से ही व्यक्ति को संघर्ष करने की क्षमता, धैर्य और प्रयास की ओर केंद्रित कर देते हैं, और इसीलिए हमें अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का आभार करना चाहिए जो अंततः हमें निखारती ही हैं।
पीड़ा दे देती सहज साधन को आधार इसीलिए प्रेमी करे कष्टों का आभार -II प्रेम सारावली II
हम तो सौभाग्यशाली रहे कि हमारी संस्कृति, समाज और परिवार ने हमारा मार्गदर्शन किया, अब हमारा यह उत्तरदायित्व है कि जिस विरासत को हमारे पूर्वजों ने सहेज कर रखा और समृद्ध किया उसे हम खो ना दें, और आगे आने वाली पीढ़ियों को सौंपें ताकि वे भी आदर्श जीवन जी सकें। अपने वर्तमान जनसंख्या अनुपात को देखा जाए तो हम प्रसन्नता से कह सकते हैं कि भारत विद्यार्थियों और युवा शक्ति का देश है, अतः हमें अपने विद्यार्थियों और युवा शक्ति को अपनी पूरी क्षमता से आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करना चाहिए। हमारा अपनी समृद्ध संस्कृति, समाज और देश के प्रति इतना योगदान तो होना ही चाहिए। हमें स्वयं से यह प्रतिदिन पूछना चाहिए कि क्या हमारा जीवन ऐसा है जिसे देख कर विद्यार्थी और युवा शक्ति प्रेरणा पायें? क्या वर्तमान परिवेश में हमारे जीवन में कर्मठता और नैतिकता का वह स्तर दिखता है जिसे देख लेने मात्र से किसी विद्यार्थी या युवा का जीवन सँवर जाए? और हमें यह सोच-सोच कर दुखी ना होना पड़े कि “हे भगवान! देखो तो आज की पीढ़ी को!” जब हम ही समाज की अग्रिम पंक्ति में खड़े हैं तो यह हमारा नहीं तो और किसका दायित्व है कि नई पीढ़ी को सही वातावरण मिले?
अपशब्दों का प्रयोग, नशीले पदार्थों का सेवन, सामाजिक रूप से असहज कर देने वाले क्रिया-कलाप, क्या ये सब पीढ़ी-दर-पीढ़ी नहीं फैले हैं? अनेकों विद्यार्थियों और युवाओं को इन सब की ओर किसने धकेल दिया? विद्यार्थी जीवन के कुछ ही वर्ष होते हैं जिन्हें यदि संयम और निष्ठा से जी लिया जाए तो फिर युवा भटक नहीं सकता, क्या हमारे पास इतना भी समय और गंभीरता नहीं कि कुछ वर्षों के लिए भी हम अपनी क्षमता और ध्यान उन पर लगा सकें? ऐसे बहुत से परिवार हैं, ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने प्रयास कर के अपनी युवा शक्ति को भटकने से बचा लिया, और आज वे युवा स्वयं को धन्य मानते हैं। ऐसे परिवारों, विद्यार्थियों और युवाओं की सजगता को मेरा प्रणाम।
विद्यार्थियों और युवाओं के जीवन को दूषित कर देने वाली बुरी संगति और आदतों से सम्बन्धित इन समस्याओं का हल यह है कि उन्हें अपनी ओर से अच्छा वातावरण देने के साथ-साथ हम यह प्रयास करें कि विद्यार्थियों को बचपन से ही पाठ्यक्रम के माध्यम से “व्यावहारिक नैतिक शिक्षा” दी जाए ताकि वे इस ज्ञान को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में अनुभव कर-कर के अपने-अपने जीवन में उतार सकें, फिर उन्हें जीवन में आगे चल कर भारी-भरकम नीति शास्त्र को रटने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी, नैतिकता के स्वाध्याय से उनका स्वभाव और चरित्र ही ऐसा हो जाएगा कि उन्हें सही और गलत का निर्णय करने में देर नहीं लगेगी और यह हम सभी का अनुभव भी है कि विद्यार्थियों और युवाओं से प्रेम करने वाले शिक्षक और मार्गदर्शक उन्हें निरंतर अभ्यास करने की सीख देते हैं।
प्रेमी जन स्वाध्याय को देते बड़ा महत्व धर्म ज्ञान श्रम प्रेम का हो उनमें एकत्व -II प्रेम सारावली II
स्नेही मार्गदर्शकों की यह विशेषता होती है कि वे स्वाध्याय को बहुत महत्व देते हैं क्योंकि ऐसा करने से उन्हें उनके कर्तव्यों का, परिश्रम करने का तथा प्रेम का यथार्थ ज्ञान हो जाता है।
विद्यार्थी की सीखने की क्षमता और श्रेष्ठता के लिए यह आवश्यक है कि वह भौतिक सुखों के पीछे ना भागे बल्कि जितना संभव हो सके सुखों से दूरी बनाए क्योंकि सुख मन को अनियंत्रित कर देते हैं, मन पर से नियंत्रण हटते ही विद्यार्थी की लक्ष्य के प्रति प्रयासों में कमी आने लगती है और विद्यार्थी की संकल्प शक्ति और तेज घटने लगता है।
पंथी सुख थोड़ा बहुत रख सुख का परहेज अनियंत्रित मन को करे करे शिथिल तन तेज -II प्रेम सारावली II
तुम करो निर्णय तो सिर पर मैं रहूँगा मुकुट बन तुम थको जो पैर दूँगा दबा, हर लूँगा दुखन तुम छात्र हो, मैं सरलता का व्यावहारिक ज्ञान हूँ मैं प्रेम हूँ -II मैं प्रेम हूँ II
प्रेमी के अनुभवों में विद्यार्थी से प्रेम कहता है कि मेरे आश्रित होकर तुम्हें जीवन में जब-जब निर्णय लेने की आवश्यकता होगी तब-तब मैं तुम्हारे मस्तक का मुकुट बन कर तुम्हें प्रेरणा दूँगा, और जब तुम परिश्रम कर के थकान का अनुभव करोगे तो मैं सेवक बन कर तुम्हारी थकान और दुखन को तुम्हारे थके मन के पैरों से चुरा लूँगा, तुम जिस विद्या के विद्यार्थी हो मैं उसी विद्या का सरल और व्यावहारिक रूप हूँ।
प्रेममय जीवन में आइए हम विद्यार्थी को उसकी गरिमा और गौरव की अनुभूति दें, आइए हम विद्यार्थी के जीवन में कुछ सहयोग दें, हम उसकी लगन की, उसके परिश्रम की जय करें! मेरी प्रेममय चेतना से यह प्रार्थना है कि सभी विद्यार्थियों और साधकों को ऊँची विवेक शक्ति और बुद्दि की क्षमता प्राप्त हो तथा जिन्हें शिक्षा प्राप्त है उन्हें उसके यथार्थ प्रयोग की अद्भुत क्षमता प्राप्त हो जाए।
करे कृपा सब पर सहज प्रियतम प्रेम लुटाय
बुद्धिहीन को बुद्धि दे शिक्षित को समझाय
-II प्रेम सारावली II
सभी को अल्पज्ञानी का प्रणाम!