प्रसंग-9-प्रेम: साधकों के लिए

प्रेम: साधकों के लिए

                                           ऐसी सीढ़ी प्रेम की प्रेमी देत बनाय
                                           पंथी उतरे प्रेम में ज्यों-ज्यों चढ़ता जाय
                                                                                                   -II प्रेम सारावली II-
                                            माया जिसको राह दे वही पथिक पथवीर
                                            संयम जिसमें प्रेम का सो प्रेमी मतिधीर 
                                                                                                    -II प्रेम सारावली II-
                                              पंथी प्रेमी अनुभवी तर्क उसी का ठीक
                                              मन को लंगड़ा मत बना उसे झुकाना सीख
                                                                                                      -II प्रेम सारावली II-
                                              रुचियाँ अपनी साध ले प्रेम भाव कर भक्ति
                                              साथ जगत जब छोड़ दे देती साथ प्रवृत्ति
                                                                                                      -II प्रेम सारावली II-
                                              रोए जो दुख से कभी कभी करे सुख भोग
                                              साधक यह साधन नहीं ऐसे पलते रोग
                                                                                                        -II प्रेम सारावली II-
                                              इधर मुक्ति की खोज है उधर सुखों पर ध्यान
पहले चाह समेट ले फिर साधन को जान
-II प्रेम सारावली II-
                                                  मैं मरुस्थल का कृषक
                                                  संभावनाओं का जनक
                                                  राह का चाह से मिलाप हूँ
                                                  मैं प्रेम हूँ
                                                                                                           -II मैं प्रेम हूँ II-
                                                 पंथी पथ का मान कर प्रेमी ना इतराय
                                                 राजपथिक प्रेमी नहीं गलियों गलियों जाय
                                                                                                            -II प्रेम सारावली II-
                                                  प्रेम ज्ञान अति गूढ़ है अहं ज्ञान की फाँस
                                                  प्रेम नदी का ढाल है प्रेम वृक्ष की साँस
                                                                                                             -II प्रेम सारावली II-

4 thoughts on “प्रसंग-9-प्रेम: साधकों के लिए”

  1. Thank you for this insightful post! The information you provided is very useful and well-explained. I especially liked how you broke down complex concepts into easily understandable parts. Your writing is clear and concise, making it a pleasure to read. Keep up the great work.

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