क्या आपने प्रेम का अनुभव किया है? क्या आपने प्रेम किया है? क्या आपको भी लगता है कि प्रेम बहुत कीमती है, ज़रूरी है और यह कि प्रेम तो अनमोल है? लेकिन क्या कभी आपको जीवन ने यह सोचने पर विवश किया है कि वास्तव में प्रेम है क्या? प्रेमी कैसे होते हैं? प्रेमी कैसे बनते हैं? और वे कैसे जीते हैं? प्रेममय जीवन में आइए हम प्रेम को यथार्थ रूप में जानें, प्रेम को जिएं, प्रेम में झूमें, हम प्रेम में डूबें।
अपने जीवन के अनुभवों से, थोड़े प्रयासों और संतों की कृपा के प्रसाद स्वरूप, प्रेम के सम्बन्ध में मुझ अल्पज्ञानी ने जो कुछ भी जाना है, उसे मैने अभ्यास के लिए दो पुस्तकों “प्रेम सारावली” एवं “मैं प्रेम हूँ” के रूप में संकलित कर लिया है, मेरी बातों का आधार यही दो पुस्तकें हैं। तो प्रश्न है कि प्रेम क्या है? प्रेमी कैसा होता है?
“भावपूर्ण सम्बन्ध के निर्दोष अनुभव को प्रेम कहते हैं।” ।। प्रेम सारावली- सूत्र-१ ।।
जब हमें किसी भी व्यक्ति, वस्तु या विषय से एक भावनात्मक जुड़ाव का अनुभव होता है, ऐसा जुड़ाव जिसमें कोई कपट नहीं होता कोई विरोध नहीं होता तभी हम उस व्यक्ति या वस्तु से प्रेममय सम्बन्ध का अनुभव करते हैं।
भावपूर्ण सम्बन्ध का निर्दोष अनुभव सतत् करने वाले व्यक्ति को प्रेमी व्यक्ति कहते हैं I प्रेम करना प्रेमी का स्वभाव है। ।। प्रेम सारावली- सूत्र-२ ।।
सब को अपना ले सदा रहता एक समान भावपूर्ण व्यवहार है प्रेमी की पहचान ।। प्रेम सारावली ।।
प्रेमी वही है जो अपनाना जानता है, जो एक बच्चे की तरह निश्चल भाव से बस आपसे जुड़ जाता है, जिसका व्यवहार कठोर या द्वेषपूर्ण नहीं होता बल्कि भावपूर्ण होता है।
पावन करते कर्म हों मोहित करते शब्द जीवन आनंदित करे प्रेम जिसे उपलब्ध ।। प्रेम सारावली ।।
प्रेमी का व्यवहार ऐसा होता है कि वह दूसरे के चित्त को भी निर्मल कर देता है, पावन कर देता है। उसके शब्दों में मन मोह लेने वाली मिठास होती है। जिसे प्रेम प्राप्त हो जाता है वह अपने और दूसरों के जीवन को आनंदित करता है। किसी प्रेमी स्वभाव के व्यक्ति से मिलकर आपने भी सहज ही एक जुड़ाव को महसूस किया होगा, यही तो प्रेम का प्रभाव है।
वाणी की मधुरता मैं भाषा की सरलता मैं भावों का सुखद अभिप्राय हूँ मैं प्रेम हूँ ।। मैं प्रेम हूँ ।।
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है, कि जहाँ मैं हूँ वहाँ वाणी मधुर हो जाती है, जहाँ मैं हूँ वहाँ भाषा सरल हो जाती है और भावों के ऐसे अर्थ समझ में आने लगते हैं जो सदैव सुख ही देते हैं।
आ जुड़ा सम्बन्ध मैं हो गयी सौगंध मैं सज गया साधन सुलभ संसार हूँ मैं प्रेम हूँ ।। मैं प्रेम हूँ ।।
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं वह सम्बन्ध हूँ जिसे जोड़ना नहीं पड़ा बल्कि अपने आप जुड़ गया, मैं वो कसम हूँ जो खुद में ही ले ली गयी, मैं तो सहज ही प्राप्त हो जाने वाला साधन संपन्न संसार हूँ। भावना, संवेदना, अनुभूतियों का योग मैं वर्णित अधूरा छूट जाता हूँ मैं भाषा-भोग में अनुभवों का विवाह हूँ मैं प्रेम हूँ ।। मैं प्रेम हूँ ।।
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं तुम्हारे हृदय की भावना, संवेदनाओं और अनुभूतियों का महामिलन हूँ। मुझे भाषा-भोगी विद्वान भी अधूरा ही वर्णित कर पाते हैं, मैं तो अनुभवों को संस्कार और परंपरा से जोड़ देने वाला, उन्हें जीवन भर के लिए आपस में जोड़ देने वाला अटूट नाता हूँ, मैं उनका विवाह हूँ।
लेकिन प्रश्न यह है कि यदि प्रेम इतना ही सुगम है तो हर व्यक्ति प्रेमी व्यक्ति क्यों नहीं हो जाता? क्यों हम समाज में व्यावहारिक रूप से जीवन भर प्रेम को और प्रेमी व्यक्ति को खोजते ही रह जाते हैं? बल्कि जीवन में कई बार तो हम प्रेम के लिए तरस जाते हैं। हम सभी बिना शर्त प्रेम पाना चाहते हैं लेकिन अब मुझे पूछने दीजिए कि क्या हम सभी बिना शर्त प्रेम देना चाहते हैं?
प्रेमी दाता प्रेम का ज्यों सुगंध दे फूल वंचित केवल माँगता देना जाता भूल ।। प्रेम सारावली ।।
प्रेमी वह नहीं जिसे अपने सुखों के लिए अपने आराम के लिए प्रेम चाहिए, बल्कि जैसे कोई फूल सुगंध लेता नही बल्कि देता है ऐसे ही प्रेमी का ध्येय प्रेम पाना नहीं प्रेम देना होता है, इसके विपरीत स्वार्थी और वंचित प्रेम माँगता ही रह जाता है, प्रेम देना उसका स्वाभाव नहीं होता।
प्रेमी जादूगर बड़ा, करे रंग-सत्संग प्रेम तरल में घोल दे जीवन के सब रंग ।। प्रेम सारावली ।।
यह प्रेमी का जादू नहीं तो और क्या है जो जीवन के सभी रंगों में सच्चाई का संग नहीं छोड़ता, किसी तरल पदार्थ की तरह स्वयं भी जीवन के साँचे में ढल जाता है और जीवन के सभी रंगों को प्रेम में घोल देता है। देह धाम मन मठ बने उठे प्रेम का जाप मानव जीवन प्रेम में बदले अपने आप ।। प्रेम सारावली ।।
जब कोई मनुष्य प्रेम में ठहरने लगता है तो उसे प्रेम की महिमा समझ में आने लगती है, प्रेम जीवन को सकारात्मक रूप से बदल देता है, प्रेमी के शरीर में, मानसिक स्थिति में भी सुखद बदलाव आने लगते हैं, देह मानो किसी पवित्र जगह की तरह हो जाती है और मन मानो किसी ऐसे स्थान की तरह हो जाता है जहाँ प्रेम ही प्रेम गूँजता रहता है।
मैं ठहरना रंग का मैं चिर-लगन की तूलिका दिव्यता के अवतरण का चित्र हू मैं प्रेम हूँ ।। मैं प्रेम हूँ ।।
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं अपने रंग में किसी को रंग कर उस रंग का पक्का हो जाना हूँ, मैं सदा लगी रहने वाली लगन की तूलिका हूँ जो प्रेमी में दिव्यता के उतर जाने का चित्र खींच देती है, मैं दिव्यता के जन्म का चित्र हूँ।
संकल्प मैं, मैं प्रतीक्षा धैर्य मैं, मैं परीक्षा आस में बरसों पका शबरी का मीठा बेर हूँ मैं प्रेम हूँ ।। मैं प्रेम हूँ ।।
प्रेमी के अनुभवों में प्रेम कहता है कि मैं कोई चलतू बात नहीं हूँ मैं एक संकल्प हूँ जो मन को भटकने नहीं देता, मैं अपने मीत की प्रतीक्षा हूँ, मैं धैर्य हूँ जो दृढ़ता लाता है, मैं स्वयं में मानो एक परीक्षा हूँ जिसे प्रेमी ही उत्तीर्ण कर पाता है, मैं वह मीठा बेर हूँ जिसकी खोज शबरी ने राम के आने की आस लगाकर बरसों बरस की।
कुछ लोग कहेंगे कि “अरे जीवन की सच्चाइयाँ बड़ी कठोर हैं, समाज इतना सरल नहीं होता, प्रकृति भी निष्ठुर जान पड़ती है, जब अस्तित्व बचाने की नौबत आती है तो जीवन संघर्ष ही दिखता है, प्रेम कल्पना लगने लगता है।”
तो क्या मैं यह पूछ लूँ कि मानव समाज को इतना जटिल और आक्रामक किसने बनाया? नैतिकता अक्सर कमजोर क्यों पड़ जाती है? नये-नये क़ानून बनाने की नौबत ही क्यों आ गयी? जानवरों के कौन से संविधान हैं? वो जैसे भी हैं, बुद्धि से जितने भी सक्षम हैं प्रेम तो कर ही लेते हैं!
नैतिकता सोए जहाँ होता दूषित खून लड़ें भ्रष्टता से वहाँ नये-नये कानून ।। प्रेम सारावली ।।
कहीं ऐसा तो नहीं कि हम प्रेम को समझना ही नहीं चाहते, समझना भी छोड़िए, क्या हम सभी प्रेम को महत्व देना चाहते भी हैं?
क्या अचरज सब को सदा प्रेम समझ ना आय भाव तरंगें गूढ़ हैं प्रेमी ही पढ़ पाय ।। प्रेम सारावली ।।
और यह बात सिर्फ़ व्यक्ति विशेष पर ही लागू नहीं होती, परिवार, समुदाय और देश के स्तर पर भी लागू होती है, दुनिया के ज़्यादातर देश शांति और प्रेम को अपना मुख्य ध्येय बताते हैं लेकिन भीतर ही भीतर असुरक्षा की भावना और विस्तारवाद को पालते पोसते रहते हैं, बहुत कम देश ऐसे हैं जिन्होने प्रेम को अपने हर निवासी के लिए गंभीरता से लिया है, धन्य हैं वे संस्कृतियाँ जिनमें प्रेमियों ने जन्म लिया, जिन्होंने मानवता को प्रेम का बल दिया।
शांति-प्रेम की बात हो देते देश चिढ़ाय जग की कथनी ही रहे प्रेमी कर दिखलाय
।। प्रेम सारावली ।।
कुछ लोग प्रेमी को दुर्बल और शक्तिहीन समझते हैं, वे प्रेमी की सरलता को होशियारी की कमी के रूप में देख लेते हैं, उन्हें प्रेमी कोई भावुक बेचारा ही लगता है।
प्रेमी को पीड़ित कहे प्रेम भाव ठुकराय सत्य प्रेम आनंद को वंचित देख न पाय ।। प्रेम सारावली ।।
गौर से देखा जाए तो इस दुनिया का सबसे बड़ा वंचित वही है, सबसे बड़ा गरीब वही है जो इतना भी नहीं समझ सकता कि एक माँ जब अपने बच्चे के लिए अपने भौतिक सुखों का त्याग करती है तो उसे क्या सुख मिलता है, ऐसे वंचित को अपने भीतर यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि समर्थ मानव देह में रह कर भी वह कितना बेचारा है।
जो जन भोले सरल हों उन्हें न दुर्बल जान वे जग को वरदान दें उन्हें प्रेम का ज्ञान ।। प्रेम सारावली ।।
हमें यह स्वीकार कर लेना होगा कि ये हमारे व्यापारी मन का ही असर होता है कि हम प्रेम को भी सुख देने वाला व्यापार समझ लेते हैं और प्रेम को किसी राशि की तरह कभी नकद में हासिल कर लेना चाहते हैं और कभी इसे उधार का समझ बैठते हैं।
प्रेम राशि दिखती नकद दिखती कभी उधार व्यापारी मन को सदा प्रेम लगे व्यापार ।। प्रेम सारावली ।।
अरे! मन का तो स्वभाव ही है फायदे और नुकसान में उलझे रहना। मनुष्य का सारा जीवन निकल जाता है और कम ही पड़ जाता है, कुछ भी ऐसा नहीं प्राप्त होता जो उसके भीतर के, उसके जीवन के खालीपन को भर दे, जो उसे पूर्णता का अनुभव कराए, जो उसे उसके भीतर मौजूद ऊँची चेतना का अनुभव करा दे। मेरी प्रेममय चेतना से यह प्रार्थना है कि प्रत्येक मानव को प्रेम का ऐसा अनुभव दे कि उसे समय रहते प्रेम का महत्व समझ में आ जाए, मानव जीवन प्रेममय हो जाए।
हो कोई संजोग जो ऐसा अवसर आय जीवन चाखे प्रेम को कोई प्रेमी पाय ।। प्रेम सारावली ।।
सभी को अल्पज्ञानी का प्रणाम!
8 thoughts on “प्रसंग -1: प्रेम क्या है? प्रेमी कैसा होता है? : पहचान एवं परिचय”
8 thoughts on “प्रसंग -1: प्रेम क्या है? प्रेमी कैसा होता है? : पहचान एवं परिचय”